पुत्र के दीर्घायु के लिए महिलाओं ने रखा निर्जला जीवित्पुत्रिका व्रत
शाम को पूजा कर पुत्र के दीर्घायु होने की कामना की
बलिया। पुत्र की लंबी आयु के लिए महिलाओं ने बुधवार को निर्जला जीवित्पुत्रिका व्रत रखा। पूरे दिन व्रत रहने के बाद शाम को स्नान ध्यान करने के उपरांत नए वस्त्र धारण कर तथा सोलहों श्रृंगार कर मंदिर व अपने घरों में पुरोहित से कथा श्रवण किया। कथा श्रवण करने के बाद अपने से बड़ों का पैर छूकर स्वयं व बच्चे की दीर्घायु के लिए आशीर्वाद लिया। तत्पश्चात सुबह में पारण कर व्रत तोड़ा।
बता दे कि प्रत्येक वर्ष आश्वीन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है। इस बार यह व्रत सौभाग्यवती महिलाओं ने पुत्र के दीर्घायु के लिए बुधवार को बिना अन्न जल के रखा। पूरे दिन बिना अन्न जल के व्रत रहने के उपरांत महिलाओं ने शाम स्नान किया। तत्पश्चात नए वस्त्र तथा सोलहों श्रृंगार कर जीवित्पुत्रिका की पूजा की। इस दौरान महिलाओं ने अपने सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, मिष्ठान आदि चढ़ाकर पुत्र के दीर्घायु होने की कामना की। इसके बाद नजदीकी मंदिर व अपने-अपने घरों में पुरोहित से कथा श्रवण किया। तत्पश्चात अपने से बड़ों का पैर छूकर पुत्र
के दीर्घायु होने तथा स्वयं स्वस्थ रहने का आशीर्वाद लिया। व्रत के अगले दिन पारण कर व्रत तोड़ा। यह जीवित्पुत्रिका व्रत सौभाग्यवती महिलाएं संतान की मंगल कामना के लिए रखती है, जिनके पुत्र होते है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की लंबी आयु के साथ ही अच्छा स्वास्थ्य और संपन्नता प्राप्त होती है। यह जीवित्पुत्रिका व्रत महाभारत काल से ही किया जा रहा है।